डा. जहांगीर हसन
हमेशा की तरह इमसाल भी ईद के अवसर पर देश और समाज में मजहबी कार्ड खेलने की पूरी तय्यारी कर ली गई है। जबकि आम जनता चाहे वह हिन्दू हो या मुस्लिम किसी को एक दूसरे से कोई शिकवा—शिकायत नहीं है। बल्कि ज्यादातर आम जनता आपस में मिल्क-जुल कर जीने में विश्वास रखते हैं। इमसाल खासकर सियासी वर्ग की ओर से जिस प्रकार से मुस्लिमों को टारगेट और परेशान किया जा रहा है वह किसी भी हिसाब से देश और जनता के हित में शुभ नहीं है। एक मिनट के लिए यह मान लिया जाय कि पब्लिक प्लेस पर नमाज़ पढ़ने से किसी को तकलीफ हो सकती है। लेकिन छतों पर भी नमाज़ पढ़ने से किसी को तलीफ़ को सकती है, यह हरगिज समझ में आने वाली बात नहीं है। आज कल जिस प्रकार से सड़कों और छतों पर नमाज़ पढ़ने को ले कर हंगामा किया जा रहा है, यह सब बातें कभी भी देखने में नहीं आईं। इससे पहले होली को लेकर भी जिस प्रकार से शोर मचाया गया वो भी किसी हिसाब से ठीक नहीं था। ईमानदारी से देखा जाए तो इस बार होली के अवसर पर हिन्दू-मुस्लिम दोनों वर्ग मनचलों के शिकार हुए हैं। एक ओर जहां उन्नाव में एक मुस्लिम अधेड़ उम्र को जान से मार दिया गया, वहीं दूसरी ओर दिल्ली में भी एक हिन्दू युवक को जान से मार दिया गया। कानपुर में एक हिन्दू युवक को खूब शराब पिलाया गया और फिर सुकी पत्नी के साथ बेहूदी की गई, जब उस महिला ने विरोध किया तो उसको खेत में ले जा कर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। अगरा में डीजे बजाने से रोकने पर एक बेवा हिन्दू महिला को नंगा करके उसे बेल्ट और डंडे से पीटा गया। इस प्रकार से और बहुत सारी घाटनायें देखने को मिलीं। जो किसी भी लहाज से देश और समाज के लिए लाभदायक नहीं।
होली का तेहवार जो हमेशा से एक पवित्र तेहवार माना जाता था और होली के अवसर पर सभी वर्ग के लोगों के साथ सदभाव और प्रेम का इजहार किया जाता था वह चीज इमसाल के होली के अवसर पर कहीं देखने में नहीं आई। हैरत तो इसस बात पर होती है कि मुट्ठी भर लोग सम्पूर्ण देश को अपने इशारों पर नचा रहे हैं। और उससे भी हैरत की बात यह है कि देश और समाज का एक बडा संजीदा और पढ़ा-लिखा वर्ग मुट्ठी भर कठोर और कुरूर लोगों के सामने नतमस्तक हैं।
हम ने अपने बचपन में देखा है कि होली हो या ईद हिन्दू-मुस्लिम सभी वर्ग के लोग बड़े ही प्यार और आपसी भाई-चारे के साथ मानते थे और एक दूसरे के साथ अपनी अपनी खुशियाँ बांटते थे। हिन्दू बिरादरी होली के अवसर पर अपने गाँव-मुहल्ले के मुस्लिमों को मिठाईया और सुपारी और बादाम खिलाते थे तो मुस्लिम बिरादरी ईद के अवसर पर अपने गाँव-मुहल्ले के हिंदुओं को सेवईयाँ खिलाते थे। और इस प्रकार हमारा देश और हमारा समाज मिल-जुल कर अपने अपने तेहवारों में सभी वर्गों के लोगों को शामिल करते थे। इस कारण एक ओर होली का रंग और भी गहरा जाता था तो दूसरी ओर ईद की सेवईयाँ और मीठी हो जाती थीं।
लेकिन पिछले कुछ बरसों से हमारी इस देशी और सामाजिक खुशियों को मानो किसी की नज़र लग गई है। हिन्दू-मुस्लिम हर तेहवार के अवसर पर कुछ उग्र लोग देश और समाज में जहर घोलने और नफरत फैलाने का काम करते हैं। तो हमें ऐसे लोगों को पहचानना होगा और ऐसे लोगों की हर चाल को नाकाम बनाना होगा, ताकि हमारा देश और हमारा समाज हर प्रकार की अधार्मिक और नफरती चिनटुओं से सावधान रहे।
चलते चलते हम यह भी कहना चाहते हैं कि सियासी नेताओं की ओर देखने और उनसे कोई उम्मीद और आस रखने से बेहतर है कि हम सभी हिन्दू-मुस्लिम एक जुट रहें, अपने देश और अपने समाज को हर प्रकार के नफरत से दूर रखें। खुद भी खुश रहें और अपने समाज को भी खुश रखें। होली या ईद हर तेहवार पर एक दूसरे का साथ दें और एक दूसरे की खुशी का हर संभव खयाल रखें। यही इंसानियत है। फिर समाज में भी और मरने के बाद यही अच्छाइयाँ काम आने वाली हैं।